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Vivek Agarwal

Romance Fantasy Inspirational

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Vivek Agarwal

Romance Fantasy Inspirational

ग़ज़ल - न ही रात दिन की चिंता

ग़ज़ल - न ही रात दिन की चिंता

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ग़ज़ल - न ही रात दिन की चिंता


न ही रात दिन की चिंता न ही सुब्ह-शाम देखा। 

मैंने भूल कर सभी कुछ ये ख़ुशी का जाम देखा। 


हो सके तो माफ़ करना मेरी बंदगी है ऐसी,

जो लिखा गया खुदा तो, मैंने उसका नाम देखा।


न चमकते सोने चाँदी, न दमकते हीरे मोती,

जहाँ गिर पड़े पसीना, वहीँ पर निज़ाम देखा।


न ख़ुशी बची है कोई न ही ग़म का है ठिकाना,

न ही ख़्वाहिशें हैं दिखतीं जो ये दिल तमाम देखा। 


वो भला है क्या जवानी जो नहीं बने कहानी,

भले ज़ख़्म हैं पुराने मैंने इल्तियाम देखा।


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