ग़ज़ल - हमें बदनाम करते हो।
ग़ज़ल - हमें बदनाम करते हो।
अदालत भी अगर जाएँ बड़ा कोहराम करते हो।
जो हम इंसाफ़ भी माँगे हमें बदनाम करते हो।
लुटाया है जो हक़ अपना उसे कैसे भुला दें हम,
हमारा ही तो हिस्सा है जिसे बेनाम करते हो।
बड़ी कीमत चुकाई थी हमारे बाप-दादों ने,
तभी तो आज भी अपना वही सरनाम करते हो।
जरूरत है नहीं मुझको बड़ा ही कूल कहलाऊँ,
जो सच्चा है वही बोलूँ भले इल्ज़ाम करते हो।
अमन हम चाहते हैं पर, नहीं इज़्ज़त गँवानी है,
बुराई खूब अपनी सुब्ह से ता-शाम करते हो।
हैँ कट्टर मजहबी हिन्दू यदि अधिकार वो माँगे,
विदेशी मुल्क वालों को यही पैगाम करते हो।
सताए लोग चाहें ये कि सुनवाई कहीं तो हो,
लगा तोहमत बिचारों का यूँ ख़ूँ-आशाम करते हो।
