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Rahul Dwivedi 'Smit'

Abstract

4.9  

Rahul Dwivedi 'Smit'

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ग़ज़ल २.....जब तलक आँख भर नहीं आती

ग़ज़ल २.....जब तलक आँख भर नहीं आती

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चाँद की कुछ  खबर  नहीं आती ।

है  हवा पर  नजर  नहीं आती ।।


सादगी  चाँद  को भी  आती है ;

हाँ मगर, इस कदर  नहीं आती ।।


जिद तेरी  तब  तलक सताती है ;

जब तलक आँख भर नहीं आती ।।


नींद भी  गम, ख़ुशी में इक सी है ;

हर तरह  रात भर  नहीं आती ।।


तेरे पहलू  में सो  गया था  कल ;

तेरी खुशबू किधर  नहीं आती ।।


उम्र है प्यार की  न जाने दो ;

फिर कभी  ये उमर  नहीं आती ।।


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