ग़ज़ल २.....जब तलक आँख भर नहीं आती
ग़ज़ल २.....जब तलक आँख भर नहीं आती
चाँद की कुछ खबर नहीं आती ।
है हवा पर नजर नहीं आती ।।
सादगी चाँद को भी आती है ;
हाँ मगर, इस कदर नहीं आती ।।
जिद तेरी तब तलक सताती है ;
जब तलक आँख भर नहीं आती ।।
नींद भी गम, ख़ुशी में इक सी है ;
हर तरह रात भर नहीं आती ।।
तेरे पहलू में सो गया था कल ;
तेरी खुशबू किधर नहीं आती ।।
उम्र है प्यार की न जाने दो ;
फिर कभी ये उमर नहीं आती ।।