Ghazal No. 13
Ghazal No. 13
कौन सीखा है यहाँ कुछ सिर्फ बातों से
तजरबे आतें हैं बिसात-ए-ज़िंदगी में सिर्फ मातों से
जज़्बात चाहिए निस्बतों को बनाने के लिए
कब तक निभाओगे रिश्ते महज़ खातों से
गिरा है तेज़ाब-ए-इश्क़ जबसे मेरे हाथों पे
मिट गयीं हैं लकीरें तक़दीर की मेरे हाथों से
एक तेरा मुझसे बेमतलब का रिश्ता
कीमती है लाख मतलब के नातों से
हाथों को जोड़ नहीं मुश्त बना
हासिल होता नही कुछ भी यहाँ मुनाजातों से
हर रात आती है तेरी याद ग़म की बारात लेकर
इस कदर आशिक़ी है उसे मेरे दिल की मुदारातों से
मार के खुद ही दफ़न कर दिया खुद में
आजिज़ आ गया था मैं ज़मीर के सवालातों से
मसरूफ रहा मैं मुद्द्तों अमल-ए-वफ़ा में और
दिल चुरा ले गया उनका रकीब सिर्फ बातों से
ना तेरी फितरत-ए-ज़फा बदली ना मेरा जुनूँ-ए-वफ़ा बदला
और बढ़ती रही क़ुव्वत दोनों की मुलाक़ातों से
जब से पकड़ा है ख्वाइशों का दामन मेरे दिनों ने
छूट गया है सुकूँ का दामन मेरी रातों से
ऐलान कर दिया खुद ही खुद के क़ातिल होने का
यूँ की मुफ़ाहमत हमने अपने हालातों से
किसको फुर्सत यहाँ अपनी आँखों की नमी से 'प्रकाश'
कौन रखे वास्ता यहाँ औरों की आँखों की बरसातों से।
