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piyush pateriya

Classics Inspirational

4.8  

piyush pateriya

Classics Inspirational

गांव शहर हो चला था

गांव शहर हो चला था

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मैं शहर में गाँव ढूंढ रहा था

और गाँव शहर हो चला था।

जंगल भी साफ होकर,

वीरान मैदान हो चला था।


हर कोई अब खुद के जीता था,

इंसानियत शब्द खाक हो चला था।

जो था खुदगर्ज़, बेवफ़ा, चोर,

वो न्याय से भी माफ हुआ।


ईमान जिसका जिंदा था,

उसको देखो बेवजह राख़ हो चला था।

आकर राजनीति के दलदल में देखो,

हर इंसान शैतान हो चला था।


मैं शहर में गाँव ढूंढ रहा था,

और गाँव शहर हो चला था।


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