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Naveen kumar Bhatt

Tragedy

4  

Naveen kumar Bhatt

Tragedy

गांव की व्यथा

गांव की व्यथा

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सुनो - सुनो ओ प्यारे भाई,बातें आज बताता हूं।

गांव हमारा बिछड़ रहा है ,इसका शोक जताता हूं।।


फटी फटी सी पड़ी है देखो,

गौर करो इन रोडो पर,

कागज में क्यों दौड मची,

ध्यान करो ये कोडो पर,


पीड़ा होती आज मुझे जब,इसका मान घटाता हूं

गांव हमारा बिछड़ रहा है,इसका शोक जताता हूं।।


गंदा पानी फैल रहा नित,

मालिक करते बैर नहीं है।

बड़ी भयानक बू आती है,

सुध लेने की खैर नहीं है।


आना कानी के चक्कर में,अपनी कलम चलाता हूं

गांव हमारा बिछड़ रहा है,इसका शोक जताता हूं।।


सरकारी दफ्तर खंडर हैं,

देखो चार दिवारों को।

कोई नहीं सुध लेने वाला,

हर ले सभी विकारों को।


सही बात पर उन को लगता,जैसे इन्हें जलाता हूं।

गांव हमारा बिछड़ रहा है,इसका शोक जताता हूं।।


ताल तलैया धूमिल हो गये,

पैसे की बस बर्बादी है।

खेतों में परिवर्तन कर दे,

क्यों इतनी आज़ादी है।


यही हकीकत मेरे यारा,जो बार बार समझाता हूं।

गांव हमारा बिछड़ रहा है,इसका शोक जताता हूं।।


सरकारी भूमि पर कब्जा,

जलवा खूब दिखाते हैं।

वृक्षों का खंडन करवाकर,

जड से आज मिटाते हैं।।


कैसे अपने मुख से कहते,अपना धर्म निभाता हूं।

गांव हमारा बिछड़ रहा है,इसका शोक जताता हूं।।


धूमिल सी हो गई योजना,

नल जल बिल्कुल आफ है।

खबर बड़ी चर्चित फिर भी,

गति विकास अति साफ है।।


सब अपने में मस्त यहां हैं,फिर भी नया दिखाता हूं।

गांव हमारा बिछड़ रहा है,इसका शोक जताता हूं।।


मालिक अर्जी को सुन लीजे,

विधिवत हो इसका संचालन।

कड़ी पटक उनको अब दीजै,

थाक जमा कर सोये आसन।।


कड़ी कार्रवाई हो इन पर,भारत भाग्य विधाता हूं।

गांव हमारा बिछड़ रहा है,इसका शोक जताता हूं।।


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