ख्वाब
ख्वाब
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ख्वाबों में ख्वाब देखता जा रहा।
कुछ एक किताब देखता जा रहा।
कितने अरमां पिरोए थे इस जहां,
यत्र तत्र खिताब लेखता जा रहा।।
रातों में फैले उस ख्वाब में डूबता,
हुई आंख नम उसे जैसे मैं ढूंढता,
वो सपना हमको पिरोता जा रहा,
लक्ष्य साधता रहे खुश हो झूमता।।