गांठ
गांठ
मेरी नसों में.....
तेरे खून की जमी ....वो गांठ
जब मेरे खून से होते हुए
मेरी आत्मा तक जाती हैं।
टीसती-काटती।
किरचें -किरचें करती।
भूल -भुलाकर भी ,
हर रोज दर्द की कहानियां दोहराती है।
मेरी नसों में.....
तेरे खून की जमी ....वो गांठ
बाद..... जमाने के ,
क्यों मिटता ही नहीं।
मेरे जहन में दर्द का एक लम्बा सफर जारी है।
लगता है जैसे ......अनगिनत गांठों को खोलना अभी बाकी है।