विजयदशमी
विजयदशमी
पुतला तो हर वर्ष फूंकते हैं हम
मन के काले रावण को कब फूँकेंगे
काम क्रोध मद लोभ तो उसके बच्चे हैं
उनकी जननी "आसक्ति" को कब फूँकेंगे ?
हर आदमी के अंदर रावण बैठा है
पर वह किसी को दिखाई नहीं देता
दूसरों के दोष ढूंढने में गुजर जाती है उम्र
अपने दोषों पर कोई ध्यान क्यों नहीं देता ?
ईर्ष्या-द्वेष, लोभ लालच , मान बड़ाई
मोह माया , दंभ गुरूर से बचकर रहना है
सत्य अहिंसा , अपरिग्रह, अस्तेय, ब्रह्मचर्य
के पथ पर चलकर मुक्त पवन सा बहना है
जो राह दिखाई दुनिया को प्रभु श्रीराम ने
उस राह पर चलने से सबका उद्धार है
"आसक्ति" के इस रावण को फूंक डालो
फिर सबके लिए मोक्ष का रास्ता तैयार है ।।
सभी आदरणीय और प्रियजनों को विजयदशमी के पावन त्यौहार पर हार्दिक बधाइयां और शुभकामनाऐं
"श्री हरि"