फ़सल दिल में खड़ी हो जैसे
फ़सल दिल में खड़ी हो जैसे
मौत सर पे ही खड़ी हो जैसे
साँस आपस में लड़ी हो जैसे।
दिल ने फ़िर कर दी बग़ावत हमसे
नज़रे उनसे ही भिड़ी हो जैसे।
नैनों से बहने लगेगी धारा
नैन से नैन लड़ी हो जैसे।
पैरों में कंकड़ चुभे आपके जो
चेहरे में शिकन पड़ी हो जैसे।
मज़बूत होंगी नफ़स की दीवारें
ज्योँ नज़र खुद पे पड़ी हो जैसे।
ज़िंदगी में भी कहद आयी हो
भूख़ से वो भी लड़ी हो जैसे।
ज़िंदगी मौत से घबरायेगी
ख़ाख से राख उड़ी हो जैसे।
बीज़ नफ़रत के दिलों में न रखो
इक फ़सल दिल में खड़ी हो जैसे।
उलझनों को मैं ही क्यों प्यारा लगूँ
उलझनें मुझसे अड़ी हो जैसे।
