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Ratna Pandey

Drama Tragedy

5.0  

Ratna Pandey

Drama Tragedy

फ़िर वह लौट ना सका

फ़िर वह लौट ना सका

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मुझे अपनी बाँहों में खिलाने वाला

मेरा हौसला बढ़ाने वाला

सूरज की तरह तपना सिखाने वाला

अपने कन्धों पर चढ़ाकर दुनिया दिखाने वाला

अपनी बाँहों में आज मुझे क्यों ढूँढ़ रहा है ?


हर धड़कन उनकी मुझ तक क्यों आ रही है ?

साँसों की लय मुझे क्यों पुकार रही है ?

गुज़रे ज़माने साया बनकर आँखों में बार-बार क्यों दिखाई दे रहे हैं ?

ख़ामोशी उनकी मेरी धड़कन क्यों बढ़ा रही है ?

बेज़ुबानी उनकी मुझे क्यों बुला रही है ?


नहीं माँगा आज तक कुछ भी मुझसे उन्होंने

सब कुछ वार दिया मुझ पर बिना माँगे उन्होंने

यह ग्लानि मुझे खाए जा रही है कुछ काम ना आ सका मैं उनके,

यह परेशानी मुझे सताए जा रही है।


मैं बैठा हज़ारों मील दूर ख़ुद से ही आज लड़ रहा हूँ।

फँस गया हूँ इस भंवर में कि आज डूबा जा रहा हूँ।

चाहता हूँ तैर कर आ जाऊँ मैं, थाम लूँ वह हाथ

जो छोड़ आया था वहाँ मैं।


चूम लूँ वह हाथ जो माथे की सलवटों को मिटाते थे

महसूस करूँ वह अधरों का चुंबन जो पेशानी पर वह लगाते थे।

आशीर्वाद के वो लफ्ज दिल से उनके निकल जाते थे।

पोंछ कर मेरी आँखों से अश्क मुझे सुलाते थे

मेरी भीगी पलकों पर चुंबन लगाते थे।


पुकार रही हैं कुछ चीखें मेरे कानों में आ रही हैं।

बह रही हैं नदियाँ मेरी पलकों को भी भिगा रही हैं।

उम्मीद है उनको कि बिछड़े फिर मिलेंगे

मरने से पहले एक बार गले ज़रूर लगेंगे।

अंतिम साँस तक वह रास्ता देखते रहेंगे।


फँस गया हूँ यहाँ मैं ऐसे दलदल में

नहीं कोई रस्सी निकलने के लिये है नज़र में।

काश तुम्हारा कहा मान लिया होता

सही रास्ते और सही तरीके से विदेश में आया होता।


नहीं काँपते पैर वापिस आने में मेरे।

काश एक बार फिर अपने देश की मिट्टी को चूम पाता।

पिता के पैरों को छूकर आशीर्वाद मैं उनका ले पाता।

परिवार से अपने मिल पाता।


आया था यहाँ पैसा कमाने, पैसा तो मैंने कमा लिया

अपनों को लेकिन मैंने गँवा दिया।

क्या करूँगा मैं यहाँ ? छोड़ आया हूँ वहाँ, अपना जहाँ।


रो रहे हैं कंधे मेरे, जिन कंधों पर चढ़कर बचपन बिताया था

आज उन्हीं कंधों को, मेरे कंधों की तमन्ना है

लेकिन यह मैं कर न पाया।

काश घर की रूखी सूखी लालच में

मैं बिन बुलाया मेहमान ख़ुद को तो ना बनाया होता

आज पिता की अर्थी के नीचे मेरा भी कांधा होता।



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