फ़ागुन आयो
फ़ागुन आयो
ब्रज की दुलारी बरसाना की प्यारी,
भर पिचकारी केशर चंदन
खेलत होली संग देवकी नंदन्
रंग छायो मस्ती को काना,
ओढ़ चुनरिया फ़ागुन आयो,
गोप-गोपियों की आस पुरनारो
जगदिश आज रंगायो,
रंग तारी मस्ति को रंग मारी हस्ती को
मिटा दियो,
हे प्रभु गिरधारी मोह पछाडि जिवन उजारो
भर पिचकारी मोहे रंग गिरधारी
भव पार लगायो।

