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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy Inspirational

एक तूफां भीतर

एक तूफां भीतर

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एक बड़ा तूफ़ान यहां बाहर है

एक बड़ा तूफ़ान यहां भीतर है

बाहर का तूफां सबको दिखता 

भीतर का तूफां भीतर छिपता

बाहर बहुत ख़ौफ़नाक मंजर है 

भीतर का तूफां न आये, नजर है

भीतर कितना मचा हुआ ग़दर है

भीतर आंसुओं ने ओढ़ी चद्दर है

नहीं तो डूब जाते कई शहर है

बाहर का तूफां तो कुछ वक्त में

हो जायेगा एक शांत सरोवर है

पर भीतर के तूफां का क्या करे,

जो कहे खुद को अजर-अमर है

भीतर का तूफां कैसे शांत करूं?

जिसने सूखा दिए कई समंदर है

नहीं आती, अब कोई राह नजर है

हर राह का टूटा हुआ, अब पत्थर है

भीतर के तूफान का ऐसा असर है

रवि से निकल रही तम किरण है

हर तरफ बस कहर ही कहर है

जब तक न हो, बाला की मेहर है

तब तक चुप न हो तूफां भीतर है

बालाजी भक्ति में ऐसा असर है

शांत होती, हर दरिया की लहर है

वो व्यक्ति नर से बनता नारायण है

गर सच्चे हृदय जाये प्रभु शरण है

चुप होते बड़े-बड़े तूफां उसके घर है

एक बार मन से कर प्रभु स्मरण है

वो मिटा देंगे दुःख, संताप तेरे हर है

भीतर तूफां की एक दवा मणभर है

जो भी चले प्रभु के नाम की डगर है

जपता रहे, प्रभु नाम आठों प्रहर है

शांत होता हर तूफां उसके भीतर है

बोलो बजरंगबली की जय सब नर है।



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