एक तुम और एक मैं
एक तुम और एक मैं
देख रही हो न,
उन युगल जोड़े पंछी को,
पंख फैलाये हवा में,
जो जा रहे हैं आशियाने को,
एक तुम हो, एक मैं हूँ।
किनारे खड़े पेड़ के जोड़,
उसे शिकायत नहीं किसी से,
बने बैठे सबके रैन बसेरे,
बाहें फैलाये स्वागत कर रहे,
एक तुम हो, एक मैं हूँ।
पानी के ऊपर बिखरे,
प्यारी सुंदर-सी फूलें,
तैरती हुई सौंदर्य निखार रही,
झाड़ियों से अलग,
पहचान बना के,
क्योंकि खुश्बू तुम हो,
चमक मैं हूँ।
आसमान में उड़ते काले बादल,
सूरज की गहरी लालिमा पा कर,
जो निखर गई मोहक दृश्य में,
उस चुप मासूम सी समां की,
एक रंग तुम हो, एक मैं हूँ।
जो दिख रहा है ना मकान,
वो अपने सपनों का महल हैं,
मैंने बहुत मेहनत की उसमें,
खुशियाँ ही खुशियाँ भरने की,
क्योंकि रानी तुम हो, राजा मैं हूँ।

