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Ajay Singla

Thriller

4  

Ajay Singla

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एक सुखद मोड़ - भाग ६

एक सुखद मोड़ - भाग ६

3 mins
277


विशम्भर अब तक पैसे इकठ्ठे करने में ही अपना सुख ढूंढ़ता था पर आज उसे पता चल गया था कि गरीबों की मदद में जो सुख मिलता है वो किसी भी चीज में नहीं है। उसने अब ठान ली थी कि वो इस सुख का मजा बार बार लेगा। इंद्रेश की मदद से उसने गांव के जो और गरीब किसान थे और जिनकी जमीन पहले उसने हड़प ली थी, उन सब को वापिस कर दी। गांव के लोग जो मंदिर आते थे वो जब उसके पास आते तो वो कुछ धार्मिक कथा कहानियां भी उन्हें सुना देता था जो उसने विष्णु के घर में ग्रंथों से पढ़ी थीं। धीरे धीरे काफी लोग उसके पास आने लगे। लोग उसे अपनी परेशानियां भी बताने लगे और विशम्भर अपने मुताबिक उस का हल बता देता था। एक दिन एक किसान ने कहा कि गांव में जो खेतों के लिए नहर से नाला आता है वो दो बरसों से बंद पड़ा है। विशम्भर बोला कि मैं और तो कुछ नहीं कर सकता पर है भगवान के आगे प्रार्थना जरूर करूंगा। विशम्भर को ध्यान आया कि दो बरस पहले ये नाला जब बंद हुआ था तो सिंचाई विभाग का एक कर्मचारी देखने आया था और उसने कहा था कि शहर में आकर बड़े अधिकारी से इसकी बात कर लें ताकि इस की मुरम्मत का काम शुरू हो सके पर उस वक्त उसने कोई ध्यान नहीं दिया था।

अगले दिन विशम्भर इंद्रेश के पास गया और उसे सारी समस्या बताई। उसने इंद्रेश से अगले ही दिन शहर जाकर अधिकारी से मिलने को कहा। इंद्रेश का भी ऐसे पुण्य के कामों में मन लगता था। उसने भी बिना देरी किये ये काम करवा दिया और दो तीन दिन में उस नाले में पानी आने लगा। गांव की सिचाई की एक बहुत बड़ी समस्या पलक झपकते ही ख़तम हो गयी। गांव वालों को लगा कि जब से विशम्भर (साधु ) उनके गांव में आया है सब कुछ अच्छा ही हो रहा है। उनकी आस्था विशम्भर में बढ़ती जा रही थी। एक दिन उसका बेटा विजय अपनी माँ को लेकर मंदिर आया और उसके बाद विशम्भर के पास भी वो दोनों आ गए। वहां काफी लोग बैठे थे। जब विजय और उसकी माँ विशम्भर के पांव छू रहे थे तो एक बार तो विशम्भर बहुत भावुक हो गया। उसने मुश्किल से अपने आंसू रोके। उस रात वो सोच रहा था कि क्या उसे अपनी पहचान सब को बता देनी चिहिए। फिर उसने सोचा की कुछ काम अभी बाकी हैं और वो करने के बाद ही वो लोगों के सामने असली रूप में आएगा।

गांव के लोग अब काफी खुशहाल हो गये थे। वो विशम्भर के बड़े बेटों के पास अब कम जाने लगे थे। उनकी अहमियत दिनों दिन कम हो रही थी और विशम्भर को लोग ज्यादा मानने लगे थे। विशम्भर के वो दोनों बेटे अनिल और अमित अब काफी परेशान रहने लगे थे। एक तो उनको ये नहीं समझ आ रहा था की गांव की जो पुरानी जमीनें उनके पिता के वक्त से उनके पास थीं वो सब किसानों को वापिस कैसे मिल गयीं और दूसरा साधु के आ जाने के बाद उनको कोई नहीं पूछता था। मन ही मन वो विशम्भर (साधु ) से ईर्ष्या करने लगे थे।

एक दिन विशम्भर का दोस्त इंद्रेश उस के पास आया। वो कहने लगा कि देखो, जो तुम गांव के लिए करना चाहते थे वो तुमने कर दया। अब तुम अपने असली रूप में लोगों के सामने आ जाओ और अपने बेटों और पत्नी के साथ सुख से रहो। विशम्भर बोला, चलो मैं इस के बारे में सोचूंगा। वो सोच रहा था कि अगले दिन वो अपने बेटों के पास जा कर देखेगा की उन का व्यवहार कैसा है। ये सोचते सोचते वो सो गया। 


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