एक शर्माता सा खत
एक शर्माता सा खत
खत लिखने बैठी तुमको
तो सोचा शुरू कैसे करूँ,
लिखूँ कि जान से प्यारे हो
या लिखूँ इस जहाँ में बस तुम ही हमारे हो।।
मेरे प्रिय, मेरे अपने,
तुम्हे मेरा हाल बताऊँ।
बंद करती हूँ आँखें तो आते हो तुम नज़र,
खोलती हूँ इन्हें तो सामने तुम्हें ही पाऊँ।
जानते हो मेरी साँसों की,
हर तार की झँकार में तुम हो,
कहो न क्यों खफा हो,
क्यों इतने गुमसुम हो।
मेरी जिंदगी है तुमसे
मेरी इबादत मेरा प्यार हो तुम,
मेरे बंजर सहरा से
जीवन की खिली बहार हो तुम।
मेरे गुलशन का
सबसे हसीन गुलाब हो तुम
मेरी हर शोर करती उलझन का
चुपचाप सा जवाब हो तुम।
प्रिय, हमसाया, हमराह
फिरती हूँ तुम ही से खत को छुपाए,
पढ़ लो न मेरी आँखों में ही
ये खत भी तुम्हें देखकर नजरें झुकाए।

