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Mamta Singh Devaa

Tragedy

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Mamta Singh Devaa

Tragedy

' एक सच ये भी है '

' एक सच ये भी है '

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ये सुबह बहुत डराती है

मगर ये काली अंधेरी रात दिल को भाती है,

बस ये रात ठहर जाये कैसे भी करके

ये सूरज को निगल जाये,

नहीं तो अगली सुबह वो फिर से आयेगा

और बेहद थका जायेगा,

थकते थकते ज्यादा ही थक गई हूँ

इस थकान से पक गई हूँ,

मन से काम करो तो एक उत्साह रहता है

नहीं तो उत्साह ख़ाक रहता है,

कोई नहीं समझता किसी के मन के दर्द को

अब कहाँ ढूंढ़ूँ अपने हमदर्द को,

सारा खेल मन का ही तो है शरीर का थका तो चल जाता है

मन का थका तो मर जाता है।



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