एक साल...!!
एक साल...!!
तेरे जाने का गम
क्यों कम नहीं होता
सालता रहता है
अंदर ही अंदर मेरे
अश्क बन कर ।
मैं जो जिंदा हूं
अब तलक बिन तेरे
क्यों बस
जिए जा रहा हूं
एक जिंदा लाश बनकर।
दफन बेशक
हो गई है
तेरी हर याद
मेरे इस सीने में,
खोजती हैं क्यों
ये निगाहें फिर मेरी
तुझे ही बार बार
एक सवाल बनकर।
मैं अब तन्हा हूं
सुनसान सहमे राहों में
फिर क्यों मुझे वो
अकेला नहीं छोड़ती
एक हम सफ़र के जैसे।
साथ बेशक तेरा
अब छूट गया
पर उस जहां में
जब भी मिलूंगा
सिर्फ तेरा होकर।
तेरे यूं चले जाने से
एक साल भी सदियों से लगे
क्या जी सकूंगा
बिन तेरे ये जिंदगी
यूं बैरागी होकर.??