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बेज़ुबानशायर 143

Tragedy

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बेज़ुबानशायर 143

Tragedy

एक पंछी

एक पंछी

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एक पंछी पिंजरे के इस पार आना चाहता है ! 

वो भी तो एक खुला आसमान पाना चाहता है ! 


चाहता है वो भी उन्मुक्त गगन की हद देखना ! 

साथ ही वो चाहता है अपना भी कद देखना ! 


सोचता है इन परों में जान बाकी है कि नहीं ! 

उड़ने का कोई भी अरमान बाकी है कि नहीं !


लेकिन बेजुबान ये देखो बहुत लाचार है ! 

मनुष्य का पंछियों से कैसा ये व्यवहार है ! 


कब तलक होते रहेंगे जुल्म इन पर बोलिये ! 

चुप से क्या हासिल है कोई तो अब मूहँ खोलिये !! 


       


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