एक मासूम की मुस्कान
एक मासूम की मुस्कान
मुस्कुराहटों में भी उसके एक अजीब सी ख़ामोशी है,
जैसे शरीर तो खड़ा है उसका, पर रुह में बेहोशी है,
जानें कितनी ही रातों में उसने अपनी क़िस्मत कोसी है,
मासूमियत है चेहरे पर,लेकिन आँखें बनी आक्रोशी है,
क्या ग़रीब के घर लेकर जनम बना वो इतना दोषी है,
क्या भगवान ने उसके हिस्से में एक खाली थाली ही परोसी है!
कुछ ऐसे ही सवालों को रख ज़ेहन में,
जी रहा था वो एक ज़िंदगी वीरानी,
शायद था हौंसला उसका इतना बुलंद,
कर किस्मत को मुठ्ठी में बंद,
अपनी ही करता रहा मनमानी,
किस्मत को भी होगी मुँह की खानी,
इसी उम्मीद के संग शायद,
खिलखिला रहा था वो भर कर आँखों में पानी,
हाँ बस कुछ ऐसी सी है,
उस गरीब मासूम की मुस्कान में छुपी दर्द भरी कहानी !