STORYMIRROR

Rekha Bora

Drama

4  

Rekha Bora

Drama

एक माँ की अग्नि परीक्षा

एक माँ की अग्नि परीक्षा

1 min
553

क्यों चुनी तूने राह मृत्यु की

दिखा देती जी सकती है तू

उसके बिना भी

जाने देती उसे दूर

अपने प्यार दुलार से

झेलने देती उसे


जीवन के दुःख दर्द

करने देती उसे अनुभव

इस ख़ूबसूरत छलावा सी

ज़िदगी का

क्यों छुपाए रही उसे

अपने आँचल तले

इस धूप छाँव सी ज़िंदगी में !


वो स्वयं लौट आता

या बन जाता आत्मनिर्भर

एक विजयी युवा !

क्यों सहेजे रही तू उसे

नाज़ुक फूलों की तरह !

फूलों को भी तो

एक दिन समय के साथ


अपनी शाखाओं से

टूट कर झड़ना होता है

बिछड़ना होता है उसे

अपने बागवां के ब़ागों से !

पर फिर वही फूल करते हैं

एक नयी बगिया का निर्माण !


जानती हूँ बहुत उलाहने

सहे होंगे तुमने

तेरी परवरिश पर भी

उठाये गये होंगे तीखे सवाल !

रातों को रो रोकर

सूजा ली होंगी तूने अपनी आँखें !


तू तो एक कवियत्री थी

धार पैनी कर देती

अपनी लेखनी की !

पर जानती हूँ

न हो सका होगा तुमसे ये !


क्योंकि पहले माँ थी तुम

कोमल हृदय की

सारे वार सह लिए तूने

दोषी मान बैठी स्वयं को

और सज़ा दे डाली तूने स्वयं को !


और छोड़ गयी ये संसार

पीछे रह गये अनगिनत सवाल!

क्या हर बार देनी होगी

अग्नि परीक्षा माँ को ही

पर क्यों माना तूने दोषी स्वयं को


दोषी तुम नहीं था पूरा परिवार

दोषी तुम नहीं था पूरा समाज

जो सारी जिम्मेदारियां

माँ पर छोड़

हो जाता है कर्त्तव्यमुक्त !


तुम तो चली गयी

इस संसार को छोड़ कर

पर क्या देख पाओगी

कि आत्मग्लानि की अग्नि में

कितने लोग झुलस गये हैं

तुम्हारे जाने के बाद।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama