एक लड़की थी
एक लड़की थी
ऐसी वो एक लड़की थी
किसी और लोक कि लगती थी
कुछ नायाब अदाएं दिखती थी
थोड़ी चंचलकुछ नटखट सी बातें करती थी
वो कोई हूर नहीं परी नहींमगर कुछ ख़ास अलग सी लगती थी
ना मोह उसे था दौलत सेना चाह थी
उसकी शोहरत कीना मरती थी महंगे तोहफों पर
वो तो रंग बिरंगी चुरियों संग यहां वहां इतराती थी
मामूली सी तोहफों को दोस्तो को दिखलाती थी
कुछ नायाब सी थी अदाएं उसमे
सुलझी सी साधारण सी अनोखी सी वो लड़की थी
मेरे लिए ना जाने कहां कहां हर किसी से लड़ती थी
मुझसे वो अक्सर कहती श्रृंगार मेरा अधुरा है
आईने की तरफ मुझे ले जा कर मांग को भरने कहती थी
इस दुनिया की ख्वाहिशें से सदा परे वो रहती थी
मुझे को वो अपना मिर्ज़ा ओर खुद को मेरी कनीज़ समझती थी
ठिकाना तो उसका था आसमां के किसी आशियाने में
मगर संग मेरे वो इसे ज़मीन पर गिरते सम्हलते चलती थी।