एक खत
एक खत
एक खत उस यार के नाम लिख रही हूँ
कुछ बातों और यादों का पैगाम लिख रही हूँ
व्यस्त है वो थोड़ा अपनी रोज़ मर्रा की ज़िंदगी में।
इसलिए कुछ मासूम सी शिकायते उन पन्नो में समेट भेज रही हूँ।
वो पहली बार बात कर कह रहा था में कवि हूँ, कविता लिखना पेशा है मेरा।
उन छोटी छोटी बातों का अंजाम लिख रही हूँ।
उससे गुफ्तगू करते करते मानो वक़्त का पता न लगता हो।
उसकी तस्वीरे देख उन आंखों की वो शाम लिख रही हूँ।
ऐसे तो बोलता बहुत है वो, चर्चा करना तो आदत है उसकी।
पर वो पहली मुलाकात की दास्तान गुमनाम लिख रही हूँ।
थोड़ा सा वो पागल है थोड़ा सा शफ़ीक़ भी।
वो एक शाम साथ बिताई उसमे छलका हुआ जाम लिख रही हुँ।
जानती हूं चन्द लम्हे हुए है हमे एक दूसरे से रूबरू हुए।
एक छोटी दास्ताँ ही सही पर कागज़ पे ये पैगाम लिख रही हूँ।
अल्फाज़ शायद नही है जो ये एहसास बयान कर पाते।
फिर भी एक खत अपने यार के नाम लिख रही हूं।

