*एक जमाना *
*एक जमाना *
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मैंने उस जमाने के किरदार देखे हैं,
मथुरा भी देखा मदीना भी देखा।
दिवाली भी मनाई और ईद भी,
उस समय का मंजर ही कुछ और था।
बिना रोक टोक के मुसलमानों के घर
जाते थे,
सिक्खो के घर खाना भी खाया।
मन्दिर मे शीश झुकाया।
मस्जिद के सामने बारात शांति से निकली।
घर की दीवारें एक थीं,
नहीं सोचा कभी कि मुस्लिम कौन,
हिन्दु कौन।
अब तो सब बदल चुका है,
हिन्दु मुस्लिम भाई भाई का नारा भी
खत्म हो चुका है।
सरहदों की लड़ाई जारी है,
एक दूसरे को मारने की तैयारी,
अब कुछ कहने का समय खत्म हुआ,
इन्सान हर पल लड़ने को तैयार हुआ।