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Usha Gupta

Tragedy

4.4  

Usha Gupta

Tragedy

एक जीवन औरत का

एक जीवन औरत का

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एक जीवन जीने के लिये

न जाने कितनी मौत मरती है औरत

स्वाभिमान की चिता से उठती लपटें

ठन्डी भी न होने पातीं

कि चीत्कार उठता ह्रदय

आत्म-सम्मान की मौत से


तभी आवाज़ उठती ------

दे दो मुखाग्नि अपने मायके के रिश्तों को


हर पल जूझती औरत

अप्राकृतिक मौतों से

करती रहती है प्रतीझा

प्राकृतिक मौत के आगमन का।


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