एक जीवन औरत का
एक जीवन औरत का


एक जीवन जीने के लिये
न जाने कितनी मौत मरती है औरत
स्वाभिमान की चिता से उठती लपटें
ठन्डी भी न होने पातीं
कि चीत्कार उठता ह्रदय
आत्म-सम्मान की मौत से
तभी आवाज़ उठती ------
दे दो मुखाग्नि अपने मायके के रिश्तों को
हर पल जूझती औरत
अप्राकृतिक मौतों से
करती रहती है प्रतीझा
प्राकृतिक मौत के आगमन का।