एक हव्वा की बेटी थी
एक हव्वा की बेटी थी
एक हव्वा की बेटी थी,
काँटों से घबराती थी,
कलियों से चिढ़ जाती थी,
लोग उसे पूछा करते थे,
साहिर से क़्यों मिलती हो,
वो लोगों से कहती थी
मैं साहिर से पुछुंगी,
तुम से क्यों सब जलते हैं,
लड़ जाए वो जिस्से
चाहे, पर आँखें मुझ
पे रखती थी,
बेशक उसके नखरे
थे,पर औरों सी थोड़ी थी,
छोटी छोटी बातों पर
बातें खूब बनाती थी,
मेरे एक ना कह देने
पर घंटों रोया करती थी,
एक आवाज़ लगा देता
गर छत पर झट आ जाती थी,
एक हव्वा की बेटी थी,2
चाँद का रिश्ता है क्या
तुम से,या चाँद तुम्हारे
जैसा है, दोनों में क्या
फर्क है आज़ मुझे
समझाओ ना,
खामोशी से
सुनती थी,राज़
बयाँ वो करती थी,
थोड़ी कत्थई आँखें थी,
गंदम सा रंग चेहरे का,
तिल एक रुख़्सार पे था,
बिल्कुल परियों जैसी थी,
एक हव्वा की बेटी थी,
एक हव्वा की बेटी थी,2