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Praveen Gola

Drama

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Praveen Gola

Drama

एक हाथ

एक हाथ

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मैं अकली खड़ी लड़ रही थी,

इन समाज के ठेकेदारों से,

ये रोज़ दबाते .... और दबाते,

अपनी छिछोरी बातों से।


मेरा मन अब व्यथित होने लगा था,

अपनी की हुई शिकायत पर रोने लगा था,

लगा इस भारत में अब कुछ नहीं होने वाला,

यहाँ जिसकी भैंस उसका हवाला।


यूँही छींटाकशी यहाँ चलती रहेगी,

हर रोज़ महिलाओं की असमत लुटती रहेगी,

सार्वजनिक पार्कों में जाना एक बवाल होगा,

फिर से चारदीवारी पर एक सवाल होगा।


तभी एक हाथ बढ़ा मेरी ओर,

मेरी परेशानी पर किया उसने गौर,

मेरे साथ चलने पर अपना इरादा जताया,

देखते ही देखते अपना वादा निभाया।


जो कभी मेरी सुनते ना थे,

वो खुद आज मुझ तक चले आये,

मेरी परेशानी को सार्वजनिक बता,

वो मेरे आगे अब शीश नवाये।


मैने धन्यवाद किया उस बढ़े हाथ का,

जिसने मुझे इतना सराहा,

किसी ने सच ही कहा है

एक और एक मिलके बनते ग्यारह।


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