एक गीत
एक गीत
वो धुन बन मुझे छेड़ती रही,
मैं अल्फाज बन मिलता गया,
हुआ असर जज्बातों का,
और एक गीत बनता गया।
वो अंदाज बयां करती रही,
कुछ मैं भी बेफिक्र होता गया,
स्वर और ताल वो देती रही,
अंतरा मैं दोहराता गया।
मदहोश नजरों से इशारे करती रही,
मैं भी थोड़ा खोता गया,
वो हाथ मेरा थामती रही,
और यह गीत लिखता गया।
वो मायिक ध्वनि देती रही,
मैं बस उन्हें सुनता गया
इश्क़ का वादन करती रही,
मैं उनका गायन करता गया।
वो हर कदम साथ देती रही,
मैं उनका नमाज़ी बनता गया
वो मोहब्बत का संगीत देती रही
मैं बस रोज गुनगुनाता गया
एक गीत बस लिखता गया।