एक और गणतंत्र दिवस
एक और गणतंत्र दिवस
बधाई हो
एक और गणतंत्र दिवस निकल गया
जय हिंद के नारे लगाते, शहीदों पर पुष्प माला चढ़ाते और गौरव की गाथा गाते--
रात गयी और बात गयी
यह सत्य खड़ा था, हमारे प्रगति को मुंह चिढ़ाते शहर के चौराहों पर भीषण ढंड में
अर्धनग्न बच्चे दिखने लगे भीख मांगते हुए यथार्थ दिखाते-
कल जो उछल उछल कर
गिनाये जा रहे थे उन्नति और सफलता के फंडे-
आज अपने लग गये दैनिक कार्यों में
एक कोने में या राहों में पड़े थे तुड़े मुड़े सिकुड़े
जो कल तक हाथों में लिए थे झंडे-
हम वह कर्मकांडी हैं जो श्मशान घाट पर
जीवन के बारे में सोचते हुए बन जाते है संत-
और बाहर निकलते ही फिर पड़ जाते हैं
दुनियादारी में उन विचारों का करके अंत-
कल फिर नई स्कीमों का जखीरा खोला गया
कुछ को नया नाम दिया गया और
कुछ नये रंग रूप में लपेटा गया-
देश के कथित नागरिकों को समेटा गया-
लेकिन वास्तविक सत्य
यथार्थ के धरातल पर सभी को नजर आता है-
किसको सारी योजनाओं का मिलता है लाभ,
यह बढ़ते हुए झोपड़ पट्टी के और सिकुड़ते हुए खेतों के आकार से समझा जाता है-
हमें भी अपने देश और देश के शासकों से प्यार है-
इसलिये अगले गणतंत्र का इंतजार है-
