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Rajeev Rawat

Tragedy

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Rajeev Rawat

Tragedy

एक और गणतंत्र दिवस

एक और गणतंत्र दिवस

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बधाई हो

एक और गणतंत्र दिवस निकल गया

जय हिंद के नारे लगाते, शहीदों पर पुष्प माला चढ़ाते और गौरव की गाथा गाते--

रात गयी और बात गयी

यह सत्य खड़ा था, हमारे प्रगति को मुंह चिढ़ाते शहर के चौराहों पर भीषण ढंड में

अर्धनग्न बच्चे दिखने लगे भीख मांगते हुए यथार्थ दिखाते-

कल जो उछल उछल कर

गिनाये जा रहे थे उन्नति और सफलता के फंडे-

आज अपने लग गये दैनिक कार्यों में

एक कोने में या राहों में पड़े थे तुड़े मुड़े सिकुड़े

जो कल तक हाथों में लिए थे झंडे-

हम वह कर्मकांडी हैं जो श्मशान घाट पर

जीवन के बारे में सोचते हुए बन जाते है संत-

और बाहर निकलते ही फिर पड़ जाते हैं

दुनियादारी में उन विचारों का करके अंत-

कल फिर नई स्कीमों का जखीरा खोला गया

कुछ को नया नाम दिया गया और

कुछ नये रंग रूप में लपेटा गया-

देश के कथित नागरिकों को समेटा गया-

लेकिन वास्तविक सत्य 

यथार्थ के धरातल पर सभी को नजर आता है-

किसको सारी योजनाओं का मिलता है लाभ,

यह बढ़ते हुए झोपड़ पट्टी के और सिकुड़ते हुए खेतों के आकार से समझा जाता है-

हमें भी अपने देश और देश के शासकों से प्यार है-

इसलिये अगले गणतंत्र का इंतजार है-

             



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