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Rajni Sharma

Abstract

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Rajni Sharma

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एक और एक ग्यारह

एक और एक ग्यारह

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इन आँखों के 

पानी से कह दो 

कि अब इनमें 

न आया करें 

जो बित गया 

उन लम्हों को 

एक और एक ग्यारह

बनकर न बहाया करें।


एक याद पुरानी बनकर 

ऐसे न सताया करें  

कितने भी हम पर  

ये वक्त करले सितम  

टूटेगें न आसानी से हम।

 

फौलाद का 

दामन है मेरा 

कह दूँ बेखौफ़ 

इस बेदर्द ज़माने से

क्या शिकवा करूँ।

 

और क्यूँ शिकायत  

ये तो उसूल ए हकिकत है 

गम तो उस दर्द का है 

जो रह रह कर 

ज़खमों पर नमक लगाते हैं।


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