Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Surendra kumar singh

Abstract

4  

Surendra kumar singh

Abstract

तुम्हारे पास से गुजरते हुये

तुम्हारे पास से गुजरते हुये

1 min
339


जीवन तुम्हारे पास से गुजरते हुये

तुम में खो जाना होता है

फ़िलहाल तुम्हारे पास से

गुजरते हुये

तुम्हारे होने,और न होने की

झिलमिलाहट सा कुछ है

कभी तुम खुद से दूर

तो कभी खुद के करीब

जाते हुए दिखते हो।

जब खुद के करीब जाते हो

तो तुम्हें भी लगता होगा

जैसा कि मुझे लग रहा है

कि मेरा बहुत कुछ छूट रहा है

जब तुम खुद से दूर जाते हो

तो लगता है

चमक रहे हो तुम

तुम्हें भी ऐसा कुछ लगता होगा

कितनी कितनी प्रशस्तियां हैं

तुम्हारे खुद से दूर जाने की

उन प्रशस्तियों की मधुर आवाज में

तुम खो जाते हो

अपने आप पर आत्ममुग्ध होते हुये

और मुझे ठीक ठीक वैसे ही दिखते हो

जैसे कि तुम हो

तुम्हारा तुमसे दूर जाना

यकीनन तुम्हारा खोना होता है

तुम्हारा तुम्हारे पास जाना भी

तुम्हारा खोना होता है

इसी उधेड़बुन में कि

खोना तो है खुद से दूर जाकर भी

खुद के पास आकर भी

अंतर बस इतना सा है

कि कभी खुद को खोकर

खुद को पा जाना होता है

ठहर जाना होता है

समय में

कभी खुद खोकर खुद से

दूर चला जाना होता है

गुजरते हुये गुजर जाने जैसा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract