"दूर तलक लक्ष्य राम"
"दूर तलक लक्ष्य राम"
ढलती हुई यह शाम, दे रही है, पैगाम
चलता चल, दूर तलक है, लक्ष्य राम
गर तुझे छूना है, मंजिल का आसमान
मत कर साखी, तू एक पल का आराम
बढ़ाता चल, लक्ष्य ओर कदम अविराम
जाग मुसाफ़िर, जाग हर ओर है, तूफान
आजकल सफल होना नहीं है, आसान
आज सर्वत्र प्रतियोगिता है, शूल समान
वो ही बनते है, ज़माने में फूल समान
जिनके इरादों में होती है, वाकई जान
ढलती हुई यह शाम, दे रही है, पैगाम
चलता चल, दूर तलक है, लक्ष्य राम
जिंदगी का बड़ा कठिन है, इम्तिहान
अपने ही अपनों की ले रहे है, जान
तू न डर, संकल्प बना चट्टान समान
देखते, कौन डिगा सकता, तेरा ईमान
ढलती हुई यह शाम दे रही है, पैगाम
अपनी ताक़त को ज़रा ले, तू पहचान
एक दिन जरूर रोशन होगा, तम स्थान
तू कर्म कर, बाकी काम करेगा भगवान।