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Amlendu Shukla

Abstract

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Amlendu Shukla

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दुनिया

दुनिया

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223


ये दुनिया है, मेरे समझ में न आती

कभी यह लुभाती, कभी है चिढाती।

चेहरे है रखती छिपाकर बहुत से

पता भी न चलता, किसे कब लगाती

ये दुनिया है, मेरे समझ में न आती।


अक्सर यहाँ लोग, अपने से मिलते

सदा साथ देंगें, यही वो हैं कहते।

मगर भाव रखते, सदा दुश्मनी का

कुटिलता की धारा में बहते ही रहते

अक्सर यहाँ लोग, अपने से मिलते।


जब जब भरोसा, इस दिल ने किया

जिसे अपना समझा, उसने धोखा दिया।

चोटिल किया है मुझको , उसने यहाँ

जिससे भी हमने, मुहब्बत किया।


अपना पराया, समझ में न आये

दुनिया ये हमको, है हरदम घुमाए।

आंखों में बस करके, दिल को रुलाये

अपना पराया समझ में न आये।


चेहरों को रखना, उन्हें फिर बदलना

करने लगे आज अक्सर सभी।

नाटक भी करने लगे आज ऐसे

बहुरूपिये जो कर रहे थे कभी।


क्यों वो हैं ऐसा यहाँ कर रहे ?

ये बात मेरे समझ में न आती।

ये दुनिया है, मेरे समझ में न आती

कभी यह लुभाती, कभी यह चिढ़ाती।


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