दुल्हन
दुल्हन
*दुल्हन*
ना जाने ये मेहंदी
कौनसा रंग लाई थी...
शहनाई की गूँज थी
हर तरफ़ चहल-पहल थी
मन का इक कोना
बैठा था उदास
शायद बिदाई की घड़ी
बहुत क़रीब थी
ना जाने ये मेहंदी
कौनसा रंग लाई थी...
नई सी उमंगें थीं
संग कुछ् उम्मीदें थीं
मन का वो कोना
हो रहा था बेचैन
शायद इक कड़ी
अतीत से जुड़ी थी
ना जाने ये मेहंदी
कौनसा रंग लाई थी...
अनोखे बंधन की ड़ोर थी
नए रिश्तों की जोड़ थी
मन का कोना मगर
हुआ था अकेला
शायद बचपने से दोस्ती
टूॅंट रही थी
ना जाने ये मेहंदी
कौनसा रंग लाई थी...
रंगोभरी रोशन बारात थी
अनजाने सफ़र की शुरवात थी
मन का वॅंह कोना
रो रहा था यूँ फ़ुटके
शायद ड़ोली ना होके
अरमानों की अर्थी सज़ी थी
ना जाने ये मेहंदी
कौनसा रंग लाई थी...
