Suresh Koundal

Tragedy

4.7  

Suresh Koundal

Tragedy

दुल्हन के सिसकते अरमान

दुल्हन के सिसकते अरमान

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कई सपने कई अरमान, दिल में लिए,

बन दुल्हन डोली में बैठी, कई यादें लिए ।

चली घर पराये , नई दुनिया सजाने ।

छोड़ बाबुल का घर ,पिया घर बसाने ।।

दहलीज़ से बाबुल की , वो ज्यों आगे निकली ।

तड़पी वो ऐसे ,कि जल बिन हो मछली ।।

छूटा घर प्यारा, जहां बचपन गुज़ारा ।

वो माँ का आँचल, पिता का सहारा ।।

रखा ज्यों कदम, ससुराल का था वो आंगन ।

नई उम्मीदों ,सपनों से , खिल उठा उसका मन ।।

नए रिश्तों में प्यार, तलाशें उसकी आँखें ।

पर उनकी आँखें , उसमें कमियां तलाशें ।।

वो समझें सिर्फ उसको ,इक चीज़ पराई ।

कितना सोना लाई, या कोई कार लाई ।।

लोभी निगाहें ,ज़ुबां पर रुसवाई ।

किसी ने न पूछा दिल में ,कितना प्यार लाई ।।

लालच के पुजारी, हर रोज़ करोदें ।

कभी ताना ,गाली , कभी पैरों से रौंदें ।।

जब सब्र टूटा , उसने आवाज़ उठाई ।

बाबुल को बताया ,दी मदद की दुहाई ।

कि बोले वो तू है, अब अमानत पराई ।।

हर आस टूटी,मन में खरोंचें सी आई ।

लौटी ससुराल वापिस , फिर मुड़ कर न आयी ।।

हाँ फिर एक दिन खबर, उसके जलने की आई ।

समझलो खुद ही कि जली थी, या थी वो जलाई ।।

रुधें मन से पिता ने, उसकी अर्थी सजाई ।

लिटाते चिता पर , इक बात मन में आई ।

कि क्या सच में बेटी थी, इतनी पराई ?

कि क्या सच में बेटी थी , इतनी पराई ?


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