दुल्हन के सिसकते अरमान
दुल्हन के सिसकते अरमान
कई सपने कई अरमान, दिल में लिए,
बन दुल्हन डोली में बैठी, कई यादें लिए ।
चली घर पराये , नई दुनिया सजाने ।
छोड़ बाबुल का घर ,पिया घर बसाने ।।
दहलीज़ से बाबुल की , वो ज्यों आगे निकली ।
तड़पी वो ऐसे ,कि जल बिन हो मछली ।।
छूटा घर प्यारा, जहां बचपन गुज़ारा ।
वो माँ का आँचल, पिता का सहारा ।।
रखा ज्यों कदम, ससुराल का था वो आंगन ।
नई उम्मीदों ,सपनों से , खिल उठा उसका मन ।।
नए रिश्तों में प्यार, तलाशें उसकी आँखें ।
पर उनकी आँखें , उसमें कमियां तलाशें ।।
वो समझें सिर्फ उसको ,इक चीज़ पराई ।
कितना सोना लाई, या कोई कार लाई ।।
लोभी निगाहें ,ज़ुबां पर रुसवाई ।
किसी ने न पूछा दिल में ,कितना प्यार लाई ।।
लालच के पुजारी, हर रोज़ करोदें ।
कभी ताना ,गाली , कभी पैरों से रौंदें ।।
जब सब्र टूटा , उसने आवाज़ उठाई ।
बाबुल को बताया ,दी मदद की दुहाई ।
कि बोले वो तू है, अब अमानत पराई ।।
हर आस टूटी,मन में खरोंचें सी आई ।
लौटी ससुराल वापिस , फिर मुड़ कर न आयी ।।
हाँ फिर एक दिन खबर, उसके जलने की आई ।
समझलो खुद ही कि जली थी, या थी वो जलाई ।।
रुधें मन से पिता ने, उसकी अर्थी सजाई ।
लिटाते चिता पर , इक बात मन में आई ।
कि क्या सच में बेटी थी, इतनी पराई ?
कि क्या सच में बेटी थी , इतनी पराई ?