दुआ
दुआ
बुझ गयी है आग
बच गया है धुआं
हाथों पे कालिक है पुती
किस्मत की लकीरों को
जाने क्या है हुआ
कुछ कह रही थी
तकदीर उनके ज़रिये
सुर्ख उँगलियों से
जब मैंने उन्हें छुआ
ज़िन्दगी की बिसात पे
ये खून खराबा बहोत हुआ
हाथ उठे बस आसमान की ओर
दिल से निकले तो बस, दुआ।
