दौड़
दौड़
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पैरों में बेड़ियाँ हालात की
आँखों में दौड़ के सपने
फिसलते पल लिए मुट्ठी में
सरकते साल के सपने
नहीं जानता ये होंगे के नहीं
इस ज़माने को क़ुबूल
इस दौर में निकला हूँ लिए
उस दौर के सपने