जो पल साथ गुजरे ,
वो अच्छे थे ....
जो गुजारने की सोची ,
वो बिखर गये |
दिल ~ए ~हसरतें ,
ताबूत में कैद हुई ,
हम उनके भरोसे पर ,
कैसे मर गये ?
रोज़ जख्म उधेड़ कर ,
फिर बुनते हैं ....
ये जानते हुए भी ,
कि बहुत दर्द होगा |
हर शब्द ज़हन से ,
जब निकलता है ....
आँखों में चुभन का ,
कतरा बिखरता है |
उनसे मिलकर तकलीफ ,
और भी बढ़ जाती है ,
तन्हाई में वो हर पुरानी ,
बातें और याद आती है |
बिना किसी वादे के हम ,
जब बेपरवाह उनके साथ थे ,
तब डर और हया के किस्से ,
अपने देखो कितने खास थे |
रातों को उनके साथ कभी ,
हम प्यार बेशुमार करते थे ,
और कभी झटक उनका हाथ ,
हम मुँह उधर कर बिखरते थे |
उन खूबसूरत पलों की यादें ,
मरते दम तक साथ जायेंगी ,
उनसे मिलना इत्तेफ़ाक़ सही ,
मगर बिछड़ना दर्द कहलायेंगी ||