दर्द के पतंगे (गज़ल)
दर्द के पतंगे (गज़ल)
मेरी किताब के हर सफ़्हे में बिखरी ज़िन्दगी के किस्से हैं तमाम
शमा जलायी है क्या करें, हर लफ्ज़ में छुपे दर्द के पतगें हैं तमाम।
छापे थे मंज़र कुछ हसीन पलों के भी
मध्यम शमा की रोशनी में हुआ मंज़र धुंधला तमाम
मेरी किताब के हर सफ़्हे में बिखरी ज़िन्दगी के किस्से हैं तमाम।
कुछ आवारा से हर्फ़ किनारे बीच किताब के छुपे रह गए
शिकायत है उनको, क्या करें शमा के पहलू में अंधेरा है तमाम।
मेरी किताब के हर सफ़्हे में बिखरी ज़िन्दगी के किस्से हैं तमाम
शमा जलायी है क्या करें, हर लफ्ज़ में छुपे दर्द के पतगें हैं तमाम।