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Sumit sinha

Abstract Fantasy

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Sumit sinha

Abstract Fantasy

दर्द गुलाब का

दर्द गुलाब का

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जताना हो प्यार किसी से

या करना हो इज़हार,

खुशियों का हो मौसम,

या छाया हो दुःख अपार,

जीवन के हर अवसर पर

तोड़ा गया मुझे बार-बार!


दर्द न मेरा देखा किसी ने,

न किसी ने प्यार किया,

बस अपनों से मिलने खातिर,

मुझे अपनों से दूर किया,

कितना खुश था मैं डाली पर,

तोड़ डाली से दूर किया!


हरी भरी शाखाओं पर,

खिल कर मैं इतराता था,

रंग-बिरंगी तितली के संग,

हंसता और मुस्काता था,

बहुत खुश था अपनों के संग मैं

अपनों से मुझको दूर किया!


जब भी दर्द दिया कांटों ने,

कलियों ने मुझको प्यार दिया,

नन्ही सी चिड़िया ने गा कर,

खुशियों का संसार दिया,

तोड़ लिया तभी मानव ने,

क्षण भर में दर्द अपार दिया!


मैं महकता हूं डाली पर,

कलियों संग मुस्काता हूं,

मंद पवन में झूम-झूम कर,

पंछी संग मैं गाता हूं,

पता नहीं क्या खता है मेरी,

किसकी सज़ा मैं पाता हूं।


       


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