दोस्ती
दोस्ती
जब हमारा
दिल जाता है
हम टूटकर
बिखर जाते हैं।
अपना आत्मविश्वास
खोते चले जाते हैं
और अपने आप से
दूर हो जाते हैं।
अंदर के शोर में
न जाने कहाँ
गुम हो जाते हैं।
जब हमें सुनने
और समझने
वाला दूर दूर,
तक कोई होता नहीं
और दिल है कि
कहे बिना रहता ही नहीं।
तब कागज और स्याही
हमें अपनी बाहों में
इस कदर थाम लेते हैं,
जैसे माँ अपने बच्चे को
फिर धीरे धीरे
हम स्याही के,
माध्यम से कागज के
सीने पर अपना
सारा दर्द उकेर देते हैं।
और खुद को
हल्का ख़ाली शान्त
ऊर्जा से भरा हुआ
आत्मविश्वास से भरा
हुआ पाते हैं।
कागज और स्याही
चुपके चुपके
दोस्ती निभाते हैं
वो मेरे ऐसे दोस्त है,
जो न शिक़वा करते हैं
न शिकायत बस
हर मुश्किल में
मेरा साथ निभाते हैं।
खुशियों के पलों में
दूर खड़े मुसकुराते हैं
कहते हैं हमारी
नजर न लग जाये।
