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SUNIL JI GARG

Abstract Drama Tragedy

4  

SUNIL JI GARG

Abstract Drama Tragedy

दोस्ती दे सकती टीस

दोस्ती दे सकती टीस

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मोर्चे कई खोलने पड़ते जब, विचारों की लड़ाई हो विचारों से 

रिश्तों में क्या देखें जीत क्या देखें हार, इन झूठे सच्चे यारों से


नया सोचना होता है, विचारों की भी एक टीम बनानी होती है

इनका का भी एक व्यापार सा होता है, कमाई दिखानी होती है


लम्बी चला करती हैं ऐसी लड़ाइयां, कई पुश्तें लग जाती हैं 

हारने की आदत भी होती है सीखनी, जीतें तभी सुहाती हैं 


हर कोई सोचता तो है, बस हमसे सिरफिरे लिखते हैं इन बातों को

अब कागज पे नहीं उकेरते, कीबोर्ड पर ठक ठक करते हैं रातों को 


मेरे लिए ये बातें हैं गंभीर, आपके लिए कैसी होंगी पता नहीं 

कुछ बातें निकली हैं दिल से, कुछ नहीं, वैसे मेरी कोई खता नहीं 


हम बेहतर हैं उनसे, हम सोचते हैं, वो भी तो यही सोचते होंगे 

रिश्ता आगे चलायें या न चलायें, वो भी तो जरूर तौलते होंगे 


बस यूं ही दिल की टीस किसी को न दिखाने की है आदत 

आजकल बदला सा है माहौल, बदल गया है लफ्ज़-ए-चाहत


सोचता रहा किस बात की टीस में इतना मैं लिखे जा रहा 

ए दोस्त आज, बड़ी बात कह दी तुमने, फिर भी जिए जा रहा हूँ।


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