दोस्त
दोस्त
अब तनते नहीं
शामियाने सा
सब कुछ दिखाते हुए
झूठी अकड़ जताते हुए।
अब मिलते हैं
बनकर तंबू
बहुत कुछ छुपाते
खुद को दबाते हुए
कैसे कहूँ कि हम
अब भी दोस्त हैं।
अब नहीं बचा
हमारे बीच
'तू' कहने का जज़्बा
खड़ी हो गई है
हमारे बीच
'आप' की दीवार,
जो दबा देती है
अपनी ही नींव में थोड़ा और
पहले से ही दबा हुआ प्यार।