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Rashmi Sthapak

Classics

4  

Rashmi Sthapak

Classics

दोहा-दरबार

दोहा-दरबार

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383


चिड़िया चुगती खेत में,

देती ये वरदान। 

खूब पकें ये बालियाँ,

फूलें-फलें किसान।।


कर्मवीर हलधर रचें,

अपनी खुद तक़दीर।

उनके अपने रंग हैं,

अपनी हैं तस्वीर।।


जंगल में मंगल करें,

भरें खेत खलिहान।

स्वेद-कणों से भूमि को,

स्वर्णिम करें किसान।।


बड़े हुए बाजार में,

छोटा हुआ किसान।

रो-कर ऑंसू खून के, 

बाँट रहा मुस्कान।।


धरती को सोना करें,

भर आँखों में नीर।

बेच रहे जो देश को,

उड़ा रहे वो खीर।।


सोने के कब दिन हुये,

चाँदी की कब रात।

जीवन सुनते ही गया

झूठी-झूठी बात।।


बातें वो करते बड़ी,

अख़बारी सुल्तान।

कागज पर बसते नहीं,

खेत और खलिहान।।


मिट्टी को सोना करें,

धूल बनाते फूल।

पेड़ लगाकर आम के,

पाते सदा बबूल।।


हंगामा चलता रहा,

खूब मचा तूफान।

मिट्टी-के-मिट्टी रहे,

हलधर के अरमान।।


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