दो शब्द
दो शब्द
दो अर्थहीन शब्द
कुछ बेमेल रिश्तों से
आशाहीन, गुमराह
नीरस जीवन जिय जाते है
नहीं जानते
किस ओर,किस दिशा को जाते है
खोजते है अँधेरे में
अपने अक्षरों का अस्तित्व
असफल प्रयत्नों से लौट आते है
एक ही काव्य में रहकर
जाने कैसे है एक दूजे से परे
अपने अर्थों को भावहीन समेट आते है
नहीं जानती कि इनका भविष्य क्या है?
और जाने कितने ही ऐसे शब्द,भावहीन
बेमेल, नीरस, ऊबकर
थक हारकर रिश्ते निभाय जाते है।
