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Manjeet Kaur

Abstract

4  

Manjeet Kaur

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दो पल ठहर जा, ए जिन्दगी

दो पल ठहर जा, ए जिन्दगी

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दो पल ठहर जा, ए ज़िन्दगी

खुद को सँवार लूँ मैं

दे दे दो पल और, ए ज़िन्दगी

खुद से प्यार कर लूँ मैं

दे दे दो घड़ी और, ए ज़िन्दगी

थोड़ा आराम कर लूँ मैं


हर मोड़ पर, ए ज़िन्दगी

खुद से अनजान थी मैं

सरकती रही तू, ए ज़िन्दगी

मिला न चैन दो पल भी

गुज़र गई तू, ए ज़िन्दगी

दुख सुख के झमेले में


हादसों से दो चार होती रही

बिना रुके ज़िन्दगी आगे बढ़ती रही

काश और अगर भी साथ चलते रहे

काश ऐसा होता तो अच्छा होता

अगर ऐसा नहीं होता तो अच्छा होता

न कभी चैन, न कभी आराम मिला


कौन सा पल है आखरी, कोई न जाने

जब आये, दिल माँगे दो पल और

अपने मन का तो कुछ कर लूँ

कुछ लिख लूँ, कुछ गा लूँ 

जो कर न सकी अब कर लूँ 

कुछ अपने लिए, कुछ औरों के लिए कर लूँ 


ज़िन्दगी को जिया कैसे, समझ न पाई

ज़िन्दगी गुजारी कैसे, पता ही न चला

मुश्किल रास्तों पर आगे बढ़ती रही

मंज़िल को पहचान न पाई कभी

दो पल ठहर जा, ए ज़िन्दगी

दो पल अब तो जी लूँ मैं।।



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