निंदा रस
निंदा रस
साहित्य भरा नौ रस से
समाज भरा निंदा रस से
ये रस उपजा कहाँ, किधर से
आओ जानें, समझें इसे॥
अवगुणों का भंडार है मानव
गलतियों का पुतला है मानव
हीनता का शिकार है निंदक
आत्मतरस की खान है निंदक॥
सके न कर कुछ जो वह
करे निंदा सभी की वह
पाए खुशी निंदा कर वह
करे द्वेष औरों से वह॥
कमजोरी को किसी की वह
बताए बढ़ा चढ़ाकर वह
आनन्द ले इस रस का वह
रहे मग्न निंदा में वह॥
धीरे धीरे बने ये स्वभाव उसका
छोड़े न कभी किसी को वह
सबको बनाए शिकार अपना वह
करे निंदा हर किसी की वह॥
अनोखा रस है ये ऐसा
जो पीए, उभर न पाए कभी
डूब जाए गहरे दलदल में वह
वैसा ही फल पाए वह॥
अपना दोष छिपाने को वह
देखे दोष औरों में वह
हीन भावना में जकड़ा जाए वह
पाए शान्ति इसी में वह ॥
कहें एक बात पते की हम
करें न, सुने न निंदा कभी
करें आत्म विश्लेषण, सुन निंदा अपनी
संवारें सब रिश्ते अपने हम ॥
त्याग निन्दा, बनाएँ सुन्दर समाज
रहे शान्ति मन में, बनाएँ जीवन खुशहाल
कहत बाबा फरीद, जे तू अक्ल लतीफ़, काले लिख न लेख
अपने गिरेबान में सिर नवां कर देख॥