दो चेहरे
दो चेहरे
दो चेहरे देखे दुनियाँ के इक होता नहीं प्रतीत,
जो होता है प्रतीत वो आशा के विपरीत।
कुछ बाहर से दिखते भले अंदर काला मैल,
कुछ काले रूप मे अन्दर हृदय लिये निर्मल।
कुछ तन के साफ हैं पर मन में रखते पाप,
कुछ तन के हैं काले पर मन को रखते साफ।
कुछ ओढ़ शराफत का चोला करते गंदे काम,
कुछ करके दुनिया का भला हो रहे बदनाम।
चेहरा नकली, रूप है नकली, रख के नकली वेश,
दुनिया को ये ठगते हैं बना साधू का भेष।।