दंगा-जनता-नेता
दंगा-जनता-नेता
क्यों खरोंच भी न आती है उनको -जो भड़काते हैं दंगा,
शांत भाव धर तनिक विचारें -तो सच हो जाता है नंगा।
तथाकथित बुद्धिजीवी नेता जो- अभिनेता सम होते हैं,
टपका कर घड़ियाली आँसू -भावुक हमको कर देते हैं।
भावना-नियंत्रण हम खो देते- बहकावे में आ जाते हैं,
इनकी झूठी कसमों में फंसकर- भूल लक्ष्य निज जाते हैं,
सौहार्द-प्रेम कर विस्मृत - बंधु संग ले लेते हम खूनी पंगा।
क्यों खरोंच भी न आती है उनको-जो भड़काते हैं दंगा,
शांत भाव धर तनिक विचारें-तो सच हो जाता है नंगा।
भड़काऊ नेता तो मित्रों -ताकतवर निश्चेतक से होते हैं,
कृत्रिम अभिनय करके हमारी -हर क्षणिक चेतना लेते हैं।
झूठे तथ्य दिखाकर सच सम - वे मदहोश हमें कर देते हैं,
लुट कर आती जब हमें चेतना - तब सिर धुन कर हम रोते हैं
हमें लूट बर्बादी दे खुद वे - लाभ कमा लेते हैं बड़ा ही चंगा।
क्यों खरोंच भी न आती है उनको-जो भड़काते हैं दंगा,
शांत भाव धर तनिक विचारें-तो सच हो जाता है नंगा।
देश विभाजन, चौरासी या - कैसे, कोई, चाहे कहीं के दंगे हों,
सब भड़काऊ - मंच के पीछे, आम जन मरते भूखे, प्यासे, नंगे हो।
प्यार- मुहब्बत भूल के सारी हम - खो देते हैं सारे सपने रंग बिरंगे,
चौपट शिक्षा के अधकचरे ज्ञान संग - जो जन खड़े हैं बिल्कुल नंगे।
भ्रमित चेतना निश्चेतक से - चतुर हाथ धो लेते देख लाभ की गंगा।
क्यों खरोंच भी न आती है उनको-जो भड़काते हैं दंगा,
शांत भाव धर तनिक विचारें-तो सच हो जाता है नंगा।
प्रभु ने बुद्धि सबको दी है - हम पहले तनिक विचारें ,
जब मन होता हो उद्वेलित - तब मन में शांति धारें।
प्यार और संस्कार के बल से- नफरत के दनुज को मारे,
दूरगामी परिणति क्या होगी ? तर खुद सबको भी तारें।
खुद की समझ बनाएं ऐसी- फिर भड़के न कोई दंगा,
दुख- नफरत को मिटा जगत से -बहाएं प्रेम -शांति की गंगा।