'दिलों की दास्ताँनें
'दिलों की दास्ताँनें
ये अल्फ़ाज़ों के मेल हैं दो दिलों की दास्तानें हैं
ये इश्क़ है जनाब इसे हम और आप कब समझा पायें हैं
मीठा सा अहसास कराता है दर्द ए दिल हमें डराता है
मूक हम बन जाते हैं जब ये अपना ऊफान चढ़ाता है
बे- वक्त को वक्त ये ही बनाता है
सोच कर कभी नही ये किसी पर आता है
ये जब भी तशरीफ लाता है समुद्र की लहरों सा गहराता है
करो जतन रोकने के कितने भी ये कभी नहीं रूक पाता है
चेहरा तुम छिपा भी लो दिल से आखों में उतर आता है
ये तो इश्क़ है जनाब कोई इसे कुछ नही समझा पाता है।

